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मानव जीवन के लिए वैसे तो सभी प्रकार के वृक्ष किसी न किसी प्रकार से उपयोगी एवं बहुमूल्य हैं, परन्तु परंपरा से पूजनीय वृक्षों की श्रेणी में वट वृक्ष, आम वृक्ष, पलाश, पीपल, चन्दन, कदली, नारियल, बेल आदि प्रमुख है।
बरगद या वट का छायादार विशाल वृक्ष भारत के हर कोने में होता है, ये बहुत काल तक जीता है, इसीलिए लोगों की मान्यता है कि वट वृक्ष अमरत्व का वृक्ष है, और इसमें ब्रह्म देव का निवास है, इसी वट वृक्ष के नीचे बैठकर सती सावित्री ने अपने पति को यमराज के पंजो से छुड़ाया था, इसीलिए भारत में सुहागन स्त्रियाँ इस वृक्ष की पूजा करके सटी सावित्री की याद करके अपने अपने पति की दीर्धायु के लिए इश्वर से प्रार्थना व वृक्ष-पूजा करती है।
पीपल का वृक्ष भी हमारे देश के निवासियों के लिए पूजनिय है। इसके पत्ते-पत्ते में भगवान का वास माना जाता है, इसीलिए कहा जाता है, “पत्रे पत्रे सर्वे देवा वसुदेवायते नमः” इसीलिए पीपल को पूजनीय मानकर, हिन्दू इसे नहीं काटते हैं। कहा जाता है की इसके नीचे बैठकर अनेक ऋषियों ने तपस्या करके ज्ञान की प्राप्ति की। भगवन बुद्ध को भी इसी वृक्ष के नीचे बैठकर आत्मबोध हुआ था। इसीलिए इसे “बोधी वृक्ष” भी कहते हैं।
मान्यता है की पलाश का वृक्ष सर्व मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है। कदली वृक्ष में भी भगवान विष्णु का वास माना गया है।अतः इसका व्रत व पूजन किया जाता है| चन्दन वृक्ष भी देव-पूजन की पावन सामग्री का अभिन्न अंग है, आम केले और बेल के पत्ते विभिन्न अवसरों पर पूजन के काम आते हैं।
वृक्षों की अगाध महत्ता के फल स्वरुप ही मानव के श्रद्धा-सुमन इनका पूजन करके सदियों से चढ़ते आ रहे हैं, आदि काल से ही वृक्ष मनुष्य के आश्रय-दाता, क्षुधा-पालक, तथा जीवन-दायक थे।
उस काल में मनुष्य केवल वृक्षों पर ही निर्भर था, वृक्षों की छाया में उसका आश्रय स्थल था, भूख शान्ति के लिए, वृक्षों से उत्पन्न फल उसका मुख्य आहार था, शरीर को ढकने के लिए वृक्षों के पत्ते व छाल काम में लाये जाते थे, परन्तु अब शनै:-शनै: मानव का बौद्धिक विकास होने पर इन वृक्षों से उत्पन्न लकड़ी, फाइबर, आदि का उपयोग, अनेकानेक बहुमूल्य साधनों में होने लगा, साथ ही साथ मनुष्य के मन में लालच की सीमा बढ़ने लगी। अधिकतम लाभ व धन पाने की इच्छा के वशीभूत होकर वह इन वृक्षों को काटकर इमारती लकड़ियों आदि के रूप में प्रयोग करने लगा, अंततः प्रकृति सहचरी का अनुपम उपहार ये वृक्ष मानव द्वारा वन्दनीय पूजनीय होने पर भी उसी की उपेक्षा व शोषण का शिकार बन बैठा, अब मानव यह भी भूल गया कि वृक्षों को संतुलित बनाये रखने में उसका महत्वपूर्ण योगदान है। वायुमंडल को संतुलित बनाये रखने में वृक्षों से विभूषित वन महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करते है। जबकि वृक्षों के काटने से वायु में कार्बन-डाई-आक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है एव आक्सीजन की मात्र कम हो जाती है, जिससे वायु प्रदूषित होकर प्रकृति की स्वाभाविक क्रिया में असंतुलन पैदा कर देती है। यही नहीं आज वृक्षों के बेरोकटोक काटे जाने से पृथ्वी पर दुर्लभ जीव जंतु भी समाप्त हो रहे हैं, कुछ तो संख्या में गिनने लायक ही रह गए हैं, ऐसा प्रतीत होता है की वृक्षों के अनवरत शोषण के कारण प्रकृति का शोधक कारखाना शिथिल पड़ता जा रहा है, फलस्वरुप प्रदूषित वातावरण के कारण पर्यावरणीय असंतुलन से मानव स्वास्थ पर भी घातक असर पड़ रहा है। इसके सुधार के लिए हमें तत्काल ध्यान करना होगा कि उद्योग-धंधे तो विकसित हों किन्तु प्रकृति का सौंदर्य व संतुलन अक्षुण रहे। वृक्षों के कटान को रोककर उन्हें अधिकाधिक लगाना चाहिए, तभी पर्यावरण शुद्ध होगा। तभी मानव को स्वास्थ्य सम्बन्धी रोगों से बचाया जा सकेगा।
वृक्षों के कटान को रोककर अधिक से अधिक वृक्षों को भूमि पर लगाया जाये तभी इस प्रदुषण की समस्या का समाधान संभव है। वृक्ष पूजन परंपरा वृक्षों को कटने से रोकने में सहायक है। अतः हमें इस वृक्ष पूजन परंपरा को पुनर्जीवित करना होगा, इस परंपरा को एक सामाजिक उत्सव के रूप में मनाये जाने की नितांत आवश्यकता है जिससे समाज के हर व्यक्ति के मन में इन वृक्षों के प्रति आस्था उत्पन्न होगी। मनुष्य की इसी आस्था के कारण आज भी कुछ वृक्ष हजारों सालों से पृथ्वी पर शोभायमान हो रहे हैं, इन प्राचीन वृक्षों में वट और पीपल मुख्य हैं, जिनका पूजन आस्था के वशिभूत होकर सदियों से हो रहा है। आवश्यकता इस आस्था को और अधिक दृढ़ता प्रदान करने की है। इस वृक्ष पूजन परंपरा को विकसित करने हेतु त्योहारों व धार्मिक उत्सवों पर सार्वजनिक वृक्ष-पूजन परंपरा को आयोजित करना चाहिए, वन महोत्सव आदि को बढावा देना नितांत आवश्यक है, उत्तम साहित्य की रचना के द्वारा भी मनुष्य में वृक्षों के प्रति अपार श्रद्धा उत्पन्न की जा सकती है। अतः कविता की निम्न पंक्तियों में वृषों के पूजनिय स्वरुप व पर्यावरणीय संरक्षण का महत्व प्रतिबिंबित होता है-
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