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जब मैं सास…

Sushma Gupta's Blog
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जब मैं सास…

क्या कहें क्या बात हुई, जब मैं सास बनने वाली थी,

हर ओर ख़ुशी का आलम था, बारात बड़ी सुहानी थी,

धरती आसमां भी मिल रहे, बागों में हरियाली थी,

फूलों पर भँवरे डोल रहे, गुंजन उनकी मतवाली थी,

जगमग सितारों की रात में, बिटिया की बारात आने वाली थी,

देख दुल्हे राजा को शर्मा गया चाँद भी, शोभा उसकी प्यारी थी,

खुशियाँ मन में दस्तक दे रहीं, शहनाई की गूँज निराली थी,

आकर जनमासे में बारातियों ने भी, चाट पकोड़ी खाली थी,

कोई खा रहा गोल गप्पे, किसी ने डीजे की धुन संभाली थी,

मैं भी वहां, परिचय पाने की मेरी बारी आनी थी,

परिचिता बोली कोई, “दुल्हे की सास” यही जिससे मिलनी करानी थी,

फिर कोई बोली हाँ यही तो वो, खुशियों की रस्में जिसे निभानी थीं ,

ये कैसी घड़ी, सुध बुध खो मैं सोच रही, “है कौन जो उसकी सास बनने वाली थी?”

अपने में ही मैं मगन, सुन बाते उनकी देख रही इधर-उधर,

क्या वो परी लोक से आ रही जो इनसे मिलने वाली थी,

मन की चेतना जाग उठी , अरे, मैं ही तो सास बनने वाली थी

पल  भर में मन की वीणा बज उठी, खुशियों के तारों की ध्वनि निराली थी,

भर कल्पना की मस्त उड़ान मैं, नाम से पहले शब्द ‘सास’ जुड़ाने वाली थी,

ओझल हुआ तभी “सास-विचार” ,दिल में तो बस ‘मम्मा’ की जगह खाली थी

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