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“योग मार्ग” का अवलंबन करते हैं जहाँ वे अपने मन को वश में करने से असीम शांति व दिव्यता का अनुभव करते हैं।
जिस प्रकार वायु झील के पानी के उपरी सतह को चंचल कर देती है और उसमें प्रतिबिंबित छवि के रूप को नष्ट कर देती हैं, उसी प्रकार चित्त की वृत्तियाँ मन में खलल पैदा करके उसमें निहित आत्मा एवं परमात्मा में दूरी पैदा करती हैं,
जिस प्रकार झील का स्थिर पानी अपने चतुर्गिक सौंदर्य को प्रतिबिंबित करता है उसी प्रकार योग के द्वारा जब मन स्थिर (समाधिस्थ) होता है, उसमे तब आत्म-सौंदर्य प्रतिबिंबित दिखाई देता है।
जीवन मुक्ति के योग मार्ग पर भले ही मनुष्य किसी भी मार्गको अपनाएगा परन्तु स्पष्टतया योग-पथ पर चलने पर स्वतः ही उसमें प्रगति के चिन्ह परिलक्षित होंगे, जिनमें उत्तम स्वास्थ्य, शारीरिक हल्केपन का ज्ञान, स्थिरता, बदन की निर्मलता स्वर की कोमलता, शरीर-गंध की मधुरता, एवं लोभ मुक्ति की अनुभूतियों का दर्शन होगा।
निष्कर्षतः योग साधना के द्वारा योगी का मन स्थिर व शांत होता है, वह विनयशीलता एवं सत्य का प्रतीक होता है, परमात्मा में शरण पाकर वह अपने सारे कर्म परमात्मा को अर्पित कर देता है और वह स्वयं को कर्म बंधन से मुक्त कर देता है। एवं जीवन मुक्त होकर अनंत साधना एवं परमानन्द की ओर अग्रसर हो जाता है।
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