Sushma Gupta's Blog
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“सदियों से कर रहा मानव
तू वृक्षों का पूजन वंदन
अब ये कैसा हाहाकार,
मचा दिया कैसा यह क्रंदन ?
मानव तू भूल रहा
आराध्य वृक्षों का हो रहा शोषण,
पाकर इनसे अमोल उपहार भी
, करता नहीं तू मनन,
पर, कभी न भूल इस धरती के
वृक्ष ही तो हैं भूषण
ये तो मधुर फल फूल लुटाते,
रखते स्वच्छ पर्यावरण,
करके दूषित वायु का भक्षण,
देते हमको नव जीवन
पर्यावरण के प्रहरी तुम,
कर डालो नन्हे पोधों का रोपण,
इन पोधों से ही वृक्ष बनेंगे,
तभी फलेगा-फूलेगा जीवन,
होगा खुशहाली का वातावरण
हे मानव, निर्भर है तरु
पर ही, इस धरती का आकर्षण
हो सजग तू, तरुवर का
कर शत-शत ‘अभिनन्दन’।
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