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मन की चाहत…

Sushma Gupta's Blog
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मन की चाहत कहती है , बनके रहना
तुम दीया और बाती
आँधी तूफानों में भी तुम जलते रहना
बनके जीवन साथी
नहीं घबराना मुश्किलों से, सीखो उनसे लड़ना
ये तो हैं आतीं और जातीं
चले हवा संघर्षों की, फिर भी तुम मिल जुल रहना
दुःख के बाद ही, खुशियाँ आती
कभी कभी रोते रोते भी पड़ता है हँसना
यही तो है जीवन की जाति
फूल बिना क्या बगिया सुन्दर कहलाती
हाँ फूलों से ही वो मुस्काती
ज्ञान तभी जीवंत हो पाता, जब आकर
प्रज्ञा उसमे समाती
करके रौशन अपने जीवन को, फिर
तुम जग को रोशन करना
उल्लास तभी पनपता है, जब सुख दुःख में
मिल – जुल रहते साथी
मन की चाहत कहती है, बनके रहना
तुम दीया और बाती

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