- 58 Posts
- 606 Comments
कहीं मर रही, कहीं तड़प उठी है भूखी जनता,
व्याकुल आज मनुजता सारी
घूम रहे नवयुवक देश के, लिए उपाधी भारी
काम नही हो रहे “निकम्मे”, भारत के नर-नारी
चहूँ ओर है हा-हाकार, फैल रही महँगाई की महामारी
दुखी जनता को ठोकर देकर फुफ्कार
रहे सरकारी अधिकारी.
बेरोज़गारी की खातिर “मुजरिम” बन गये लाखों डिग्रीधारी
पढ़े-लिखे लोगों की कैसी है ये “दुश्वारी” ?
जीर्ण-शीर्ण देखकर भी भारत को ,
नहीं जागते ये “सत्ताधारी”
हो कैसे उद्धार देश का; जव “प्रभुसत्ता” में
बैठे हों भ्रष्टाचारी.
जान सके न दर्द जनता का, उनके पास तो
सारी ताक़त, बंगले व गाड़ी
कभी नही देना ऐसों को मत अपना
इसी मे है भलाई और समझदारी
अन्ना-अरविंद की बातें समझो,
देश बचाने में उनसे करलो साझेदारी.
मिलजुल कर देना होगा तुमको साथ उनका
फिर करें न कोई जीवन से विरक्ति
ना हो आत्महत्या की तैयारी
जागो जनता अब तो जागो
मिलजुल के बिगुल फूँक दो
फेंकों उखाड़ यह व्यवस्था सारी.
व्यर्थ ना जाने दो बलिदान इनका
जो भूखे रहकर देश की करते पहरेदारी.
होगा देश उन्नत मिटेगी ग़रीबी
फिरसे महकेगी जीवन की फुलवारी.
Read Comments