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आज ‘होली’ के हर्षोल्लास से परिपूर्ण पर्व पर ‘मेरी
”जागरण परिवार” एवं समस्त ब्लॉगर मित्रों एवं
सभी संपादकीय मंडल व अन्य माननीयों को ‘होली’
की अनेकानेक शुभकामनाएँ…
मेरी ये शुभकामनाएँ दुनियाँ के उन बेबस, ग़रीबों,व
‘गमों’ में डूबे सभी मानवों के लिए,एवं आज की
यह ‘ग़ज़ल’ उन्हीं के नाम…
ऐ जहाँ हम करेंगे न ग़म कोई अपना
गमे जिंदगी से हम तो किनारा करेंगे.
फूलों से खाईं हैं हमने बहुत सी चोटें
कांटो से ही पेश्तर दामन संवारा करेंगें
जानते हैं ये अंधेरे हमें तो डराया करेंगे
फिर भी शामे-ग़म में उजाला हम करेंगे .
वजेंगी कहीं शहनाई औरवजेंगे ढोल-ताशे
तन्हाइयों में हम तो जशन मनाया करेंगे
वचा लिया तूफ़ा की मौजों ने अब हमको
वरना किनारें वालें तमाशा ही देखा करेंगें.
कभी होकर संजीदा हालेदिल पूछेंगे हमसे,
फिर वोही हंसकर जमाने में उड़ाया करेंगे.
हारेगी जिंदगी जब ग़मे-बोझ सह करके,
ग़मे-रुसबाइयों से खुद को ही उवाराकरेंगे.
बहुत होंगें हमपर इम्तिहान सवरो-ग़म के,
मगर दुनियाँबालों हम उनसे कभी न डरेंगे.
जानते हैं हम बहुत दुख है ग़मे-जिंदगी में,
फिरभी हम राहेगमगीनों को किनारा करेंगे.
बहुत सताएगी हमको ग़मे-जिंदगी की कहानी,
ए दिल, तब ग़ज़ल से उसे भी संवारा करेंगे.
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