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क्या यह प्रकृति से खिलवाड़ का परिणाम है?
आज से कुछ-सौ साल पहले तक धरती का पर्यावरण संतुलित था,
जंगल, ज़मीन,जल औरजलवायु सब निश्चित अनुपात में व्यवस्थित
थे, जबकि आज संपूर्ण प्रकृति असंतुलित हो उठी है, कारण, अपनी
बदलती जीवनशैली को बनाए रखने हेतु इंसान प्रकृति से खिलवाड़
करने लगा हैजिसका भयानक परिणाम हमारे सम्मुख है,मानसून के
आते ही हर ओर त्रासदी ने अपना खुला तांडव मचा दिया है, जिससे
धन व जन दोनों की हानिं हो रही है, जो आशियाने बनाने में व्यक्ति
को सदीयाँ लग जातीं हैं, उन्हीं को उत्तराखंड, ऋषिकेश,हरिद्वार,जम्मू,
आदि में जल-शैलाव पलभर में मिटाकर ले गया, प्रकृति के ऐसे बदले
रूप पर आज हमें विचार करने की गंभीर आवश्यकता है..
वर्तमान में ,तेज विकास से सब-कुछ हासिल कर लेने के लालच में
मानव ने अपने प्राकृतिक-ससाधनों का दोहन करना शुरू कर दिया है ,
जहाँतक कि अपने भावी-पीडी के हिस्से के संसाधनों को भी हड़पने में
अग्रणी बन गया है, कहीं अधिक मात्रा में कोयला-खनन करके पृथ्वी
को खोखला कर दिया है, तो कहीं वृक्षों का कटान करके गगनचुंबी इमारतें
बना डालीं, यही नहीं उसने पहाड़ों को भी नहीं वख्शा, उन्हें भी डायनामाइट
से उड़ाकर रहने योग्य वस्तियाँ तो बना लीं ,लेकिन बह इस बात से अंजान
था कि प्रकृति एकदिन इसका बदला ले लेगी और फिर वर्षों में बनी उसकी
सुख- संपदा कुछ पलों में ही नष्ट कर देगी…
पर हताशा इस बात की है कि अब भी मानव स्वयं को दोषी न मानकर
प्रकृति को ही इसका ज़िम्मेदार मानता है, नासमझी में इस पवित्र -गंगा को
भी एकमात्र त्रासदी का कारण मान रहा है,जबकि उसने पुराणों व प्राचीन ग्रंथो
में पढ़ा होगा कि गंगा को पृथ्वी पर आने के पूर्व उसके प्रचंड वेग व तीव्रता
को नियंत्रित कर हेतु स्वयं भगवान शंकर ने उसे अपनी जटाओं में धारण
किया था, जबकि इसी शिव-तत्व का वास पृथ्वी के कण-कण में है, इसीलिए
मानों यह वृक्ष ही शिव की जटा भी इन्हीं वृक्षों के रूप में समस्त सृष्टि में
दृष्टि-गोचर हैं, परंतु अज्ञानता-वश व लालच के कारण ‘शिव’ की इन वृक्ष-रूपी
जटाओं को ही काटना शुरू कर दिया, तो फिर गंगा का वेग कैसे शांत रह
पाता,और फिर यही अत्यंत क्रोधित अशांत-गंगा का वेग आपदा बनकर कुछ
पलों में ही उन आशियानों व कितनी ही जानो को अपने साथ ले गया …
यह तो गंगा की ओर से मात्र एक चेतावनी है, यदि मानव ने अब भी प्रकृति
की चेतावनी को नहीं समझा,और वह इसी प्रकार से अपने निजी स्वार्थ हेतु
अवैध भूमि-खनन व वृक्षों का कटान करता रहा तो ”महाप्रलय” आने में भी
देरी न लगेगी, और फिर उस महाविनाश को व्यक्त करने हेतु भी कोई ज़िदगी
नहीं बचेगी ,अतः इतना ही कहना पर्याप्त है कि बंद करो अब यह विनाश-लीला
एक प्रश्न हम सभी को मिलकर तलाशना होगा क्या यह प्रकृति से खिलवाड़…?
इस सृष्टि को बचाने के लिए इसका शीघ्र समाधन भी…
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