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राजनीति में अपराधीकरण और सर्वोच्च न्यायालय

Sushma Gupta's Blog
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राजनीति में दागियों पर प्रतिबंध का फ़ैसला देश के सर्वोच्च-न्यायालय का है.
अब प्रश्न यह है कि क्या इस फ़ैसले से हमारे देश की सियासत पर बिसात बिछाने
वाले दागी मोहरे पिट जाएँगे, और देश की छवि वेदाग हो पाएगी? अथवा इसके
बिपरीत इस फ़ैसले से देश में कहीं राजनीतिक अस्थिरता का माहौल तो नहीं
बन जाएगा? इस फ़ैसले के सन्दर्भ में देश की प्रमुख दो पार्टियाँ, कॉंग्रेस और
भारतीय जनता पार्टी, असमंजस में हैं, और बौखलाहट या जल्दबाज़ी में वे कुछ
कहने से बचना चाहतीं हैं. अभी तक उनका यही कहना है कि इस विषय पर
अभी अध्ययन किया जाएगा. जबकि साफ-सुथरी छवि वाले कुछ नेता इसको
स्वागत-योग्य भी बता रहें हैं. अब सर्वप्रथमयह जानना आवश्यक है कि इस
फ़ैसले पर उच्त्तम-न्यायालय द्वारा क्या निर्णात्मक प्रावधान दिए गये हैं…
सर्वप्रथम, इसमे सेशन८[४] की धारा को पूर्णतः समाप्त कर दिया गया है, जिसमें
दागी नेताओं द्वारा दलीलें पेश करके बचने का प्रावधान था ..
अब किसी भी दागी या आपराधिक किस्म के नेता को जेल से न तो चुनाव लड़ने
का ही अधिकार होगा और ना ही अपने पद पर रहने का..साथ अब दो वर्ष से अधिक की
सज़ा पाए गये व्यक्ति सदस्यता पार्टी से स्वतः ही समाप्त हो जाएगी ..
दूरदर्शन पर दिखाए गये आँकड़ो के आधार पर अभी तक कुल १४६० राजनीतिक
सदस्यों पर आपराधिक मामले हैं, जिनमें से कुल १६२ लोकसभा के सदस्य ही हैं..
जिनमें १४६ सांसद फ़ैसला के दायरे में हैं.. केवल कॉंग्रेस के ही १७१ सदस्य दागी हैं,
जिनमें ६२ पर संगीन आरोप हैं…
यदि राज्यों की बात की जाए तो अकेले उत्तरप्रदेश में १८९ विधायकॉ पर आपराधिक
मामले चल रहें हैं, जबकि देश में एकमात्र मणिपुर ही ऐसा राज्य है, जो आपराधिक
मामलों की सूची से बाहर है..
जानकारों ने उच्चतम-न्यायालय के फ़ैसले को ‘रिव्यू’ के लायक बतलाया है..जबकि
बिभिन्न पार्टीयों के कई प्रमुख नेता अपनी निजी दलीलें देकर इस क़ानून के प्रति
अपना विरोध भी प्रकट कर रहें हैं, उनका कहना है की इस क़ानून की आड़ में उन्हें
कोई राजनीतिक कारण से झूठे मामलों में भी तो फँसा सकता है, तब क्या होगा ?
एक नेता ने तर्क के आधार पर कहा की ”तुमने दर्पण देखा और छवि मेरी कहदी”
अर्थात इस प्रकार की धाराओं में ग़लती किसी और की, सज़ा की और को तो नहीं,
तब इस क़ानून का क्या होगा? ये सभी शंकाएँ जताते हुए, उन्होंने इसपर और अधिक
समीक्षा की ज़रूरत पर ज़ोर दिया, जिससे कोई निर्दोष व्यक्ति बलि का बकरा न बन
जाए. कुछ अन्य सुझावों में कहा गया है कि आज की राजनीतिक पार्टीयों में सभी
नेताओं को अपने पद पर रहते हुए एक समय-सीमा के अंतर्गत कार्यशील रहना
चाहिए, जबकी आजकल अधिकांश नेता सत्ता में आने पर केवल राजनीतिक सियासत
करके सरकारी गाडियो में घूमते है या एयर-कन्डीशन कमरों में बैठे रहते हैं, अतः
सर्वप्रथम ऐसे सांसदो को भी आपराधिक श्रेणी में लाकर इन्हें भी कार्य-शील बनाया जाए,
एवं समय-समय पर इनके कार्यों की समीक्षा भी की जाए. तभी इस क़ानून की
ज़मीनी सार्थकता सिद्ध होगी…

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