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”प्रकृति की उदारता” [लघु-कथा]

Sushma Gupta's Blog
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सुहासिनी और उसके पति राजेश के घर के आगे एक सुंदर बगीचा था, जिसे उन दोनों ने भाँति- भाँति के फलों और फूलों के द्वारा एक भव्य रूप दिया था,उनके इस छोटे से बगीचे में आम,अमरूद ,केले, पपीते, जामुन,सेव, अनार आदि के छायादार पेडो के साथ ही गुलाब ,गेन्दा,चमेली,गुल्मोहर ,पलाश,चाँदनी,सूरजमुखी एवं अनेको प्रजाति के रंग-बिरंगे फूलों से सजी क्यारीओं को देखकर सभी मंत्र-मुग्ध हो जाते,इसीकारण बहाँ हर समय बालको का शोर व पक्षी आदि का कलरव गूँजता था,तो कभी कोयल की कूहु-कूहु की आवाज़,इस खुशनुमा वातावरण में सुहासिनी उन नन्हें चहकते फरिस्तो को अपने पास बुलाकर उन्हें उनकी ही पसंद के फल व फूल देती ,सभी बालक खुश थे,पर जैसे ही यह बात उसके पति को पता चली, तो बह अत्यंत ही क्रोधित हुआ,अब बह बगीचे में उनके आने पर उन्हें मारकर भगा देता था…और तो और पेड़ों पर कलरव करते पक्षियों को भी गुलेर व डंडे से भगाता था, इसके लिए सुहासिनी ने उसे समझाने के उद्देश्य से कहा कि इस बगीचे में हमने तो मात्र बीज ही बोए है,पर देने बाली तो यह महान प्रकृति ही है जिसे हम नहीं जानते कि बह हमें कितना देगी? परंतु सुहासिनी की बात का उसपर बिपरीत असर हुआ,और फिर उसने बगीचें में सुहासिनी के प्रवेश पर भी रोक लगा दी ,अब हर समय बह बगीचे में नज़र रखने के सिवाय कोई भी कार्य न करता,और सदैव यही कहता कि इस बगीचे पर केवल मेरा ही अधिकार है,और स्वयं को मालिक कहकर भी उसकी सही देख-भाल नहीं करता, जिससे कुछ दिनों बाद ही बगीचे के सभी फल-फूल समाप्त हो गये ,बगीचा एक बिराने में बदल गया..अब न बहाँ हरे-भरे पेड़ थे और न सुंदर- सुंदर फूल ..बिना नन्हे-मुन्नो की किल्कारीभरी आवाज़ो और चिड़ियों के कलरव अब बही बगीचा शमशान लगता था… तो मित्रों ,सुहासिनी का पति अब यह अवश्य ही जान गया होगा कि ”प्रकृति भी तभी उदार होती है, जब हम स्वयं उदार होते हैं ”….

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