Sushma Gupta's Blog
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हजारों-हजारों ऐव ढूँढ़ते हैं दूसरों में
मानो हम अपने किरदारों में फ़रिश्ते हों
सिर्फ दो बातें आदमी को उससे दूर कर देतीं
एक उसका अहम और दूसरा उसका वहम
पैसे से सुख ख़रीदा नहीं जा सकता
और दुःख का कोई खरीदार नहीं होता
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